कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
क्षम्यतां नाथ, अधुना अस्माकं दोषः अस्ति।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
ब्रह्म – कुल – वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट – वेषं, विभुं, वेदपारं ।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
कहे अयोध्या here आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
शिव चालीसा के सरल शब्दों से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।
बुधवार – आप दीर्घायु तथा सदैव निरोगी रहते हैं.
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
अयोध्यादास आस कहैं तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥